ईरान-इजरायल युद्ध में अमेरिका की एंट्री: क्या है भारत का रुख?

Iran-Israel War

अगर आप न्यूज़ पर नज़र रखते हैं या सोशल मीडिया पर नजर हैं, तो आपने ज़रूर सुना होगा कि इज़राइल और ईरान मे हालात फिर से गरमा गए हैं। ईरान और इजरायल के बीच तनाव अब एक नए स्तर पर पहुंच गया है, और इस बार कहानी में एक बड़ा ट्विस्ट आया है। इज़राइल और ईरान के बीच मे अब अमेरिका ने अपनी दस्तक दे दी है।

जी हां, 22 जून 2025 को अमेरिका ने ईरान के तीन न्यूक्लियर साइट्स पर हवाई हमले किए, जिसके बाद पूरी दुनिया की निगाहें इस क्षेत्र पर टिक गई हैं। लेकिन सवाल ये है कि भारत इस पूरे मामले में कहां खड़ा है?

क्या हम सिर्फ़ तमाशा देखते रहेंगे, या कुछ बड़ा कदम उठाएंगे? आइए, इस खबर को थोड़ा करीब से समझते हैं और जानते हैं कि ये युद्ध भारत और हमारी ज़िंदगी पर कैसे असर डाल सकता है।

आखिर क्या हुआ और क्यों?

चलिए, पहले ये समझते हैं कि आखिर माजरा क्या है। 22 जून 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक ट्वीट के ज़रिए दुनिया को बताया कि उनके सभी फाइटर जेट्स सुरक्षित वापस आ गए हैं और अमेरिकी सेना को इस “सफल ऑपरेशन” के लिए बधाई दी।

ये ऑपरेशन था ईरान के तीन न्यूक्लियर साइट्स नटांज़, फोर्डो, और अराक पर हवाई हमले। अमेरिका और इजरायल का दावा है कि ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम उनके लिए और पूरी दुनिया के लिए खतरा है।

इन हमलों का मकसद था ईरान की न्यूक्लियर क्षमता को कमज़ोर करना। लेकिन ईरान ने इसे “युद्ध की घोषणा” करार दिया और जवाब में होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने का ऐलान कर दिया।

अब आप सोच रहे होंगे, ये होर्मुज जलडमरूमध्य क्या बला है? दोस्तों, ये वो समुद्री रास्ता है, जिसके ज़रिए दुनिया का 20% से ज़्यादा तेल दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जाता है।

अगर ये रास्ता बंद होता है, तो तेल की सप्लाई रुक सकती है, और इसका असर भारत जैसे देशों पर सबसे ज़्यादा पड़ेगा, जो अपनी 80% तेल ज़रूरतों के लिए आयात पर निर्भर हैं। यानी, पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें आसमान छू सकती हैं, और इसका असर आपकी जेब पर भी पड़ेगा।

ईरान-इजरायल तनाव का इतिहास

ये तनाव कोई नया नहीं है। ईरान और इजरायल के बीच दुश्मनी की जड़ें दशकों दशकों पुरानी हैं। इजरायल को डर है कि ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम उसकी सुरक्षा के लिए खतरा है।

जबकि ईरान का कहना है कि उसका प्रोग्राम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, जैसे बिजली उत्पादन। अमेरिका, जो इजरायल का पुराना दोस्त है, लंबे समय से ईरान पर दबाव बना रहा है।

कुछ जानकारों का कहना है कि ये हमले इजरायल के साथ मिलकर किए गए, क्योंकि इजरायल भी लंबे समय से ईरान के न्यूक्लियर साइट्स पर हमले की वकालत करता रहा है। लेकिन दूसरी तरफ, ईरान ने धमकी दी है कि वो इसका जवाब देगा, और होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करना उसका पहला कदम हो सकता है।

इस मामले मे भारत का क्या रुख है?

भारत ने इस मामले में साफ और संतुलित रुख अपनाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जून की रात को ही ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियन से फोन पर बात की और तनाव को तुरंत कम करने की अपील की।

भारत का कहना है कि वो इस युद्ध में किसी भी तरह की हिंसा का समर्थन नहीं करता। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “भारत क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के पक्ष में है।

हम सभी पक्षों से संयम बरतने और बातचीत के ज़रिए समाधान निकालने की अपील करते हैं।” लेकिन दोस्तों, भारत का रुख इतना आसान नहीं है।

एक तरफ ईरान हमारा रणनीतिक साझेदार है। भारत और ईरान के बीच चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट जैसे कई अहम समझौते हैं। दूसरी तरफ, अमेरिका और इजरायल के साथ भी भारत के रिश्ते मज़बूत हैं।

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है, और इजरायल से हमें रक्षा और तकनीक के क्षेत्र में मदद मिलती है। ऐसे में भारत के लिए इस तनाव में किसी एक का पक्ष लेना आसान नहीं।

विपक्ष की आलोचना

विपक्षी दलों मे, खासकर कांग्रेस, ने सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया, “भारत की चुप्पी चिंताजनक है। इस संकट में भारत को और सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

क्या सरकार के पास कोई ठोस रणनीति है? विपक्ष का कहना है कि भारत को संयुक्त राष्ट्र या अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाना चाहिए। लेकिन सरकार का कहना है कि वो पर्दे के पीछे डिप्लोमेसी के ज़रिए काम कर रही है।

विशेषज्ञ की राय

इस मुद्दे पर भारत विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार डॉ. राकेश सिन्हा कहते हैं, भारत के लिए ये स्थिति नाज़ुक है। एक तरफ ईरान हमारा रणनीतिक साझेदार है, जिसके साथ चाबहार पोर्ट और ऊर्जा व्यापार जैसे अहम हित जुड़े हैं।

दूसरी तरफ, अमेरिका और इजरायल से भी भारत के रिश्ते मज़बूत हैं। भारत को डिप्लोमेसी के ज़रिए शांति की कोशिश करनी होगी, लेकिन साथ ही अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों की रक्षा भी करनी होगी।

वहीं, दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर स्वाति मेहता का कहना है, “होर्मुज जलडमरूमध्य का बंद होना भारत के लिए बड़ा झटका होगा।

तेल की कीमतों में उछाल से महंगाई बढ़ेगी, और इसका असर आम आदमी की ज़िंदगी पर पड़ेगा। भारत को तुरंत वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों और तेल आपूर्ति के रास्तों पर काम शुरू करना चाहिए।

होर्मुज जलडमरूमध्य बंद होने से भारत पर असर:

अगर होर्मुज जलडमरूमध्य बंद होता है, तो तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं। इसका मतलब है कि पेट्रोल और डीज़ल महंगा होगा, और इससे ट्रांसपोर्ट से लेकर रोज़मर्रा की चीज़ों की कीमतें बढ़ जाएंगी।

उदाहरण के लिए, दिल्ली में रहने वाले अजय शर्मा, जो एक टैक्सी ड्राइवर हैं, कहते हैं, “पेट्रोल की कीमत अगर और बढ़ी, तो हमारा गुज़ारा मुश्किल हो जाएगा।

पहले ही महंगाई ने कमर तोड़ रखी है।” वहीं, मुंबई की एक गृहिणी, राधिका पाटिल, ने बताया, सब्ज़ी और राशन की कीमतें पहले ही बहुत ज़्यादा हैं। अगर तेल महंगा हुआ, तो और मुश्किल होगी।

इसके अलावा, भारत ने साफ किया है कि अमेरिकी जेट्स ने भारतीय हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं किया, जैसा कि कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स में दावा किया गया था।

विदेश मंत्रालय ने इन अफवाहों को खारिज करते हुए कहा, “भारत किसी भी सैन्य कार्रवाई का हिस्सा नहीं है।” लेकिन सोशल मीडिया पर ये चर्चा गर्म है कि क्या भारत को इस मामले में तटस्थ रहना चाहिए या नहीं।

विदेश मंत्रालय ने इन सभी अफवाहों को खारिज करते हुए कहा, “भारत किसी भी सैन्य कार्यवाही का हिस्सा नहीं है।” लेकिन सोशल मीडिया पर ये चर्चा गर्म है कि क्या भारत को इस मामले में तटस्थ रहना चाहिए या नहीं?

दुनियाभर मे असर:

ये युद्ध सिर्फ़ ईरान, इजरायल, और अमेरिका तक सीमित नहीं है। इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है। तेल की कीमतों मे उछाल आने से दुनियाभर की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी।

यूरोप, जो पहले ही रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते ऊर्जा संकट से जूझ रहा है, उसके लिए ये और बड़ी मुसीबत हो सकती है। वहीं, चीन जैसे देश, जो मध्य पूर्व से भारी मात्रा में तेल आयात करते हैं, वें भी इस संकट से प्रभावित होंगे।

विशेषज्ञ की राय

अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक प्रो. अहमद खान कहते हैं, ” यह जंग दुनिया की ताकतवर देशों की स्थिति बदल सकती है। अगर ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करता है।

तो ये न सिर्फ़ तेल की सप्लाई, बल्कि वैश्विक व्यापार पर भी असर डालेगा और भारत जैसे देशों को तुरंत अपनी रणनीति तैयार करनी होगी।

भारत की चुनौतियां और अवसर:

इस संकट में भारत के सामने कई चुनौतियां हैं, लेकिन कुछ अवसर भी हैं। चुनौतियों की बात करे तो तेल की कमी और महंगाई सबसे बड़ी समस्या है। लेकिन अवसर ये है कि भारत अपनी डिप्लोमेसी के ज़रिए इस क्षेत्र में शांति स्थापित करने में अहम भूमिका निभा सकता है।

भारत पहले भी कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शांति की वकालत कर चुका है। उदाहरण के लिए, भारत ने 2019 में भी ईरान और अमेरिका के बीच तनाव को कम करने की कोशिश की थी।

उस समय भारत ने दोनों देशों से बातचीत की थी और तेल सप्लाई को बनाए रखने के लिए वैकल्पिक रास्ते तलाशे थे। इस बार भी भारत सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों से तेल आपूर्ति बढ़ाने की बात कर सकता है।

निष्कर्ष: शांति की उम्मीद:

दोस्तों, ये युद्ध सिर्फ़ दो देशों की लड़ाई नहीं है। इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है, और भारत जैसे देश, जो तेज़ी से विकास कर रहे हैं, के लिए ये एक बड़ा इम्तिहान है। भारत की कोशिश है कि इस तनाव को बातचीत के ज़रिए कम किया जाए, लेकिन ये इतना आसान नहीं।

तेल की कीमतों से लेकर वैश्विक व्यापार तक, इस संकट का असर हर जगह दिखेगा। क्या भारत को इस मामले में और सख्त रुख अपनाना चाहिए, या शांति की राह पर चलना सही है? क्या आपको लगता है कि ये युद्ध जल्दी खत्म होगा, या ये और लंबा खिंचेगा?

अपनी राय कमेंट में ज़रूर बताएं। और हां, अगर आप इस खबर से अपडेट रहना चाहते हैं, तो न्यूज़ चैनल्स और सोशल मीडिया पर नज़र रखें। आखिर, ये सिर्फ़ खबर नहीं, बल्कि हमारी ज़िंदगी से जुड़ा मसला है!

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