महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा बदलाव होने जा रहा है। यहाँ की राजनीति में ठाकरे परिवार का नाम एक विशेष साथन रखता है। शिवसेना पार्टी के संस्थापक बाल ठाकरे ने हिन्दुत्व के मुद्दों को केंद्र में रखकर इस परिवार को राजनीतिक पहचान दी । उनके बेटे उद्धव और बहतीजे राज ठाकरे, दोनों ही इस विरासत के वारिस रहें हैं। लेकिन 2006 में पार्टी के नेत्रत्व को लेकर दोनों में मतभेद हो गया।
लेकिन फिर एक बार 6 साल बाद 6 जुलाई 2025 को, मराठी अस्मिता के मुद्दे पर दोनों ने एक मच साझा किया, जिसने पूरे मफ़राष्ट्र में हलचल मचा दी। आज हम इस लेख में हम आपको राज और उद्धव के बीच अलगाव के कारण और फिर दोनों के बीच एकता पर प्रक्ष डालेंगे। इस लेख के द्वारा आपको ठाकरे परिवार और महाराष्ट्र की राजनीति के संदर्भ मे उनके योगदान को समझने का प्रयास करेगा।
पृष्ठभूमि
ठाकरे परिवार महाराष्ट्र के राजनीति का एक अभिन्न हिस्सा रहा है। बाल ठाकरे ने 1966 में शिवसेना की स्थापना की थी। जिसका मुख्य उद्देश्य था मराठी लोगों के हितों की रक्षा और हिन्दुत्व को बढ़ावा देना। शिवसेना ने मुंबई और महाराष्ट्र में मराठी बोलने वालों के लिए आवाज उठाई और जल्द ही एक श्क्तिशाली राजनीतिक ताकत बन गई। उद्धव ठाकरे, बाल ठाकरे के बेटे, और राज ठाकरे उनके छोटे भाई श्रीकांत ठाकरे के बेटे, दोनों ही शिवसेना में सक्रिय थे।
उद्धव को उनकी संयमित और संगठनात्मक शैली के लिए जाना था, जबकि राज अपनी आक्रामक भाषण शैली और युवाओं को आकर्षित करने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध थे। बा ठाकरे ने जब उद्धव को शिवसेना का उत्तराधिकारी घोषित किया, तो राज को यह निर्णय स्वीकार नही हुआ। राज को लगता था कि उनकी शैली ठाकरे कि तरह थी, और वे पार्टी को बेहतर नेत्रत्व दे सकते थे। इस असंतोष के परिणाम स्वरूप, 2006 में राज ने शिवसेना को छोडकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) कि स्थापना की। MNS ने मराठी अस्मिता और हिन्दुत्व को अपने मुख्य मुद्दों के रूप में अपनाया, लेकिन शिवसेना के साथ इसका टकराव अकसर देखने को मिला। .
एक साथ आने के शुरुआती दिन
राज और उद्धव, दोनों ही बाल ठाकरे के नेत्रत्व मेन शिव सेना के महतावपूर्ण सदस्य थे। 1990 के दशक मेन दोनों ने मिलकर पार्टी के लिए काम किया और मराठो के हितो के लिए आगे बढ़ाया। राज की आक्रामक शैली और उद्धव की संगठनात्मक क्षमता ने शिव सेना को मजबूत किया। उस समय, दोनों के बीच कोई बड़ा मतभेद नही था, और वे एक साथ काम करते रहें।
अलगाव का दौर
2006 मे, जब बाल ठाकरे ने उद्धव को शिव सेना का कार्यकारी अध्यछ बनाया, तो उस समय राज ठाकरे को बहुत बड़ा झटका लगा। राज को लगता था कि उनकी शैली उन्हें नेत्रत्व के लिए आकर्षक बनाती थी। इस निर्णय से असंतुष्ठ होकर, राज ने शिव सेना छोडने का फैसला किया और एक नई पार्टी का गठन किया। जिसका नाम रखा महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (MNS)। इस अलगाव ने न केवल ठाकरे परिवार को, बल्कि शिवसेना को भी प्रभावित किया।
MNS और शिव सेना के बीच कई बार तीखी बयान बाजी और राजनीतिक टकराव देखने को मिले। हालांकि, कुछ मौको पर उनके बीच पारिवारिक बंधन कि झलक दिखी। उदाहरण के लिए 2012 मेन जब उद्धव कि एंजियोग्राफी हुई तो राज उन्हें छोड़ने घर तक गए थे। इससे ये कयास लगाया जाने लगा कि राज और उद्धव के बीच रिसते धीरे-धीरे सुधारने लगी है। लेकि राजनीतिक रूप से दोनों अलग- अलग रास्तो पर चलते रहें।
एक साथ नजर आयें
अभी 2025 मे मराठी अस्मिता का मुद्दा एक बार फिर से गरमाया हुआ है। मार्च 2025 मे RSS नेता भैया जी जोशी ने एक बयान दिया, जिसमें उन्होने मुंबई को विशेष रूप से मराठी भाषा का शहर मानने से इंकार कर दिया और यही से एक विवाद उत्पन्न हो गया। इसके अलावा, BJP कि कशा 1-5 मे हिन्दी अनिवार्य करने की नीति ने मराठी समुदाय मे असंतोष पैदा कर दिया है ।
इस नीति का बहुत जोरों से विरोध हुआ, फिर इसको वापस ले लिया गया। इसी को देखते हुए उद्धव और राज ने एक साथ 6 जुलाई को मुंबई मे सयुंक्त रैली की जिसे मराठी विजय रैली के रूप मे मनाया गया। लेकिन इस रैली मे उद्धव ने एक शर्त रखी की राज महायुति (BJP, शिवसेना-शिंदे, और NCP का गठबंधन) उनके साथ नहीं जाएंगे।
राज और उद्धव के अलग होने के महत्वपूर्ण कारण
दोनों के अलग होने के कारण
- राज और उढ़ाव के अलग होने का सबसे बड़ा कारण बाल ठाकरे द्वारा उढ़ाव को उत्तराधिकारी चुनना था राज को लगता था कि उनकी शैली येसी है कि उत्तराधिकारी उन्हें ही चुना जाएगा । लेकिन येसा नही हुआ, जिसके चलते उन दोनों के बीच एक गहरी खाईं पैदा हो गई ।
- उद्धव शैली अधिक संयमित और एक दूसरे को एक साथ जोड़ने वाली थी। जबकि राज कि आक्रामक और युवाओं को आकर्षित करने वाली थी। यह अंतर उनकी राजनैतिक रणनीतियों में भी दिखा, जिसने उनके बीच टकराव को बढ़ाया।
- हालांकि दोनों मराठी अस्मिता और हिन्दुत्व के समर्थक थे, लेकिन उनकी प्राथमिकताएं और कार्यशैली अलग थी। MNS ने अधिक आक्रामक रूप से मराठी माणूस के मुद्दों को उठाया, जबकि शिवसेना ने गठबंधन राजनीति पर ध्यान दिया।
एक साथ होने के कारण
- हालिया विवाद , मे विशेष रूप से हिन्दी को जबरन थोपने के आरोप और भैयाजी जोशी के बयान कि वजह से दोनों को एक साथ मिलने का काम किया, यही वजह है कि दोनों ने एक साथ मंच साझा किया।
- विश्लेषको का मानना है कि यह एकता BJP और एकनाथ शिंदे की शिव सेना के खिलाफ मराठी वोटो को एकजुट करने की रणनीति हो सकती है । ठाकरे परिवार की भावनात्मक अपील महाराष्ट्र के लोगों में अभी भी मजबूत है।
- पारिवारिक बंधन ने इस एकता को संभव बनाया यह रैली दर्शाती है कि साझा सान्स्कृतिक और पारिवारिक मूल्य अभी एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं।
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे क़ज़ा 20 साल बाद एक मंच पर आना महाराष्ट्र की राजनीति में एक एतिहासिक घटना है। यह एकता ठाकरे परिवार की विरासत को पुनर्जन्म दे सकती है और महाराष्ट्र की राजनीति मे नए समीकरण बन सकती है।
परंतु देखना यह रहेगा की यह एकता कहाँ तक साथ चलती है यह भविष्य की राजनीतिक स्थिति तय करेगी। यह एकता केवल एक अस्थायी गठजोड़ है, या यह महाराष्ट्र की राजनीति को नया आकार देगी, यह देखना अभी बाकी है।